जय श्रीराम


जय श्रीराम

एक भरोसो एक बल एक आस विश्वास_ एक राम घन स्याम हित चातक तुलसीदास

Jai Sri Ram

Friday, August 1, 2008

Tulsi das_saint poet


1554_1680, Hindi samvat

Sri Sri Tulsi das ji was a great saint who uses his divine script as poet; submit his life to the lotus feet of his great master Lord Rama.

He was born in 1554 samvat {as per Hindi calendar} shukla septmi, sri Sri Sawan in the mool constellation, his mother was srimati Hulsi Devi and father was Atma ram dubey. They were saryu parayan Brahman.

He was married to Ratnavali a beautiful girl from Bhardwaj family in 1583 samvat jyesta shukla Pradosh on Thursday; his marriage did not last so long.

In 1607 samvat Moni Amavasya {first moon} on Wednesday he attains the wisdom of life when lord Rama appears to bless him in the form of a child and ask sandal paste for their forehead in Sri Chitrakoot. There lord himself applied sandal mark on his forehead. He immense in the divine beauty of lord, could not even spoke a word as if not a human just an idol. Then he realize upon the state when lord was already left apart. His eyes immersed in tear of emotion resulted from the glimpse of lord Rama.

He writes number of small and big books full of divine spirit but 30 of them received by the masses at a glance. Among those thirty, one is more than any thing to guide the life in true sprit and wrapped with immortal pace named Sri Sri Ramacaritamanasa.

संबत सोरह सै एकतीसा - करउँ कथा हरि पद धरि सीसा
नौमी भौम बार मधु मासा - अवधपुरीं यह चरित प्रकासा

बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा सुनत नसाहिं काम मद दंभा - रामचरितमानस एहि नामा सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा
मन करि विषय अनल बन जरई होइ सुखी जौ एहिं सर परई - रामचरितमानस मुनि भावन बिरचेउ संभु सुहावन पावन
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन - रचि महेस निज मानस राखा पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा

रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी तुलसिदास हित हियँ हुलसी सी - सिवप्रय मेकल सैल सुता सी सकल सिद्धि सुख संपति रासी
राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु

It was 1631 samvat when a similar coincidence held as that to a time when lord appears on the planet as Rama in treata age. It was ninth of chaitra month of Hindi calendar, ninth day of brighter half and Tuesday, a day very auspicious all the way when lord appears here on, sri sri Tulsi das started his great scripture which took 2years, 7 months and 26 days to complete the glory of lord in the form of a divine scripture.



The saint was alike true holy basil who enlighten the life with the fragrance of divine spirit.

May lord bless all.

तुलसिदास जी को शत शत नमन
तुलसिदास जी को शत शत नमन
तुलसिदास जी को शत शत नमन _कोटि कोटि नमन
Thanks please.


30_
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तुलसीदास जी भगवान् श्रीराम के परम भक्त थे
तुलसीदास जी के भगवान् श्रीराम बिना सेवा के दीनों पर द्रवित हो जाते हैं

रघुबर तुमको मेरी लाज_रघुबर तुमको मेरी लाज।

सदा सदा मैं सरन तिहारी तुमहि गरीबनिवाज_रघुबर तुमको मेरी लाज।

पतित उधारन बिरद तुम्हारो, स्त्रवनन सुनी अवाज_रघुबर तुमको मेरी लाज।

हौं तो पतित पुरातन कहिये, पार उतारो जहाज_रघुबर तुमको मेरी लाज।

अघ-खंडन दुख-भंजन जनके यही तिहारो काज_रघुबर तुमको मेरी लाज।

तुलसिदास पर किरपा कीजै, भगति-दान देहु आज_रघुबर तुमको मेरी लाज।

भगवान् राम के चरण सुखदायी है इसी चरण से गंगा निकलकर भगवान् शंकर की जटा में समाई थी भगवान् श्रीराम के चरण का इतना सुंदर वर्णन तुलसीदास जी से ही संभव है

रामचरण सुखदाई_भज मन रामचरन सुखदाई_

जिहि चरनन से निकसी सुरसरि संकर जटा समाई

जटासंकरी नाम परयो है, त्रिभुवन तारन आई_भज मन रामचरन सुखदाई

जिन चरनन की चरनपादुका भरत रह्यो लव लाई

सोइ चरन केवट धोइ लीने तब हरि नाव चलाई_भज मन रामचरन सुखदाई

सोइ चरन संतन जन सेवत सदा रहत सुखदाई

सोई चरन गौतम ऋषि-नारी परसि परमपद पाई_भज मन रामचरन सुखदाई

दंडकबन प्रभु पावन कीन्हो ऋषियन त्रास मिटाई

सोई प्रभु त्रिलोक के स्वामी कनक मृगा सँग धाई_भज मन रामचरन सुखदाई

कपि सुग्रीव बंधु भय-ब्याकुल तिन जय छत्र फिराई

रिपु को अनुज बिभीषन निसिचर परसत लंका पाई_भज मन रामचरन सुखदाई

सिव सनकादिक अरु ब्रह्मादिक सेष सहस मुख गाई

तुलसिदास मारुत-सुत की प्रभु निज मुख करत बडाई_भज मन रामचरन सुखदाई

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नमामि भक्तवत्सलं कृपालु शील कोमलं

भजामि ते पदांबुजं अकामिनां स्वधामदं

निकाम श्याम सुंदरं भवांबुनाथ मन्दरं

प्रफुल्ल कंज लोचनं मदादि दोष मोचनं

प्रलंब बाहु विक्रमं प्रभो5प्रमेय वैभवं

निषंग चाप सायकं धरं त्रिलोक नायकं

दिनेश वंश मंडनं महेश चाप खंडनं

मुनींद्र संत रंजनं सुरारि वृंद भंजनं

मनोज वैरि वंदितं अजादि देव सेवितं

विशुद्ध बोध विग्रहं समस्त दूषणापहं

नमामि इंदिरा पतिं सुखाकरं सतां गतिं

भजे सशक्ति सानुजं शची पति प्रियानुजं

त्वदंघ्रि मूल ये नरा: भजन्ति हीन मत्सरा

पतंति नो भवार्णवे वितर्क वीचि संकुले

विविक्त वासिन: सदा भजंति मुक्तये मुदा

निरस्य इंद्रियादिकं प्रयांति ते गतिं स्वकं

तमेकमद्भुतं प्रभुं निरीहमीश्वरं विभुं

जगद्गरुं च शाश्व तं तुरीयमेव मेवलं

भजामि भाव वल्लभं कुयोगिनां सुदुर्लर्भ

स्वभक्त कल्प पादपं समं सुसेव्यमन्वहं

अनूप रूप भूपतिं नतो5हमुर्विजा पतिं

प्रसीद मे नमामि ते पदाब्ज भक्ति देहि मे

पठंति ये स्वतं इदं नरादरेण ते पदं

व्रजंति नात्र संशयं त्वदीय भक्ति संयुता
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कोमलचित दीनन्ह पर दाया

मन बच क्रम मम भगति अमाया

सबहि मानप्रद आपु अमानी

भरत प्रान सम मम ते प्रानी

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उमा जे राम चरन रत बिगत काम मद क्रोध

निज प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं बिरोध

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श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं
नवकंज-लोचन कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणं

कन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील-नीरद सुन्दरं
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं

भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकंदनं
रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नंदनं

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अंग बिभूषणं
आजानुभुज शर-चाप-धर संग्राम-जित-खरदूषणं

इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं।
मम हृदय-कंज निवास कुरु कामादि खलदल-गंजनं
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एक भरोस, एक बल , एक आस , विश्वास , एक रामघन हेतु चातक तुलसीदास





श्री राम जय राम जय जय राम
श्री राम जय राम जय जय राम
श्री राम जय राम जय जय राम